कविताअतुकांत कविता
विषय:- ग्लेशियर हादसा
उत्तराखंड
*कहर कुदरत का*
क़ायनात में कुदरत का
करिश्मा बड़ा निराला है
यह शांतमना नियति ने
स्वभाव सर्प सा पाया है
हम ख़ुद ही ग़र इसे छेड़े
अपना कहर बरपाती है
देवभूमि उत्तराखंड क्षेत्र
ऋषिगंगा मैया बहती है
हिमशिला समाए हैं कई
तीर्थधाम है पावन स्थल
निर्माण कई अवैध हुए
भूह्रदय बेंधा बेरहमी से
स्वार्थवश जंगल उजड़े
उष्मा ने पैर पसार दिए
खंडित हो गई हिमशिला
सैलाब जल का बह चला
नेणी ग्राम बना कब्रगाह
मजदूरों की शामत आई
रोटी रोजी पाने के ख़ातिर
ख़ुद की ही बलि चढ़ा बैठे
करता कोई भरता कोई है
हे मानव अब तू चेत ज़रा
जो पालित पोषित करती
उस माँ धरा की रक्षा कर
धानी चूनर ओढा दे अब
ग़लतियों की भरपाई कर
सरला मेहता