कवितालयबद्ध कविता
एक टूटे से घर में था प्रेम का बसेरा
मिट्टी के आंगन में था खुशियों का डेरा
लहराता था नीम का पेड़ जहां
उसी की छांव में हम बैठते थे वहां
पास ही खड़ी होती थी एक साइकिल
ढूंढते थे उसपर पिताजी का नाम है कहां
बरसो पुरानी उस साईकिल से लगाव था इतना
कोई छू ले अगर उसको पड़ता था रोना
उसी पर बैठकर घूमा करते गांव गांव
तपती दोपहर में रुककर ढूंढते
किसी घने से पेड़ की छांव
साईकिल थी या रामप्यारी
सवारी उसकी सबसे न्यारी
हर घर की थी शोभा सारी
कच्चे घर,कच्चा आंगन और आंगन में
एक साईकिल प्यारी
वो ही थी तब शान की सवारी
वक्त बदला ,शहरीकरण में लोग भूले अपना गांव
गांव में बैठे लोगो का जमघट और एक घने पेड़ की छांव
पेड़ों पा बैठे पंछियों का कलरव और कौवे की कांव कांव
बहुत याद आता है वह छोटा सा गांव
वो आंगन मै खड़े नीम के पेड़ की छांव#maithili