कविताअतुकांत कविता
ह्रदय से मर रही हैं
वे संवेदनाएँ
जो होती थी
मानवीय आधार
पहचान कराती थी कि
हम मानव है
श्रेष्ठतम है
क्षण -क्षण प्रति क्षण
घटता जा रहा है
मूल्य मेरे मानवीय ह्रदय का
घेरे जा रही है मुझे मेरी वेदनाएँ
स्वरूप हो गया वृहत्तर
निम्नतर रूप में बची हुई
लड़खड़ाती
संभलती
सह्रदय में पलती
मेरे ह्रदय में
मर रही हैं संवेदनाएँ ...!!