कवितालयबद्ध कविता
अक्सर गंगा किनारे
हम दोनों ही करते हैं बात
मैं और बनारस की
ये पथरीले घाट।।
हां !अनगिनत किस्सों
को तू समेटे
कुछ कहानियां जिंदगी
की मैं लपेटे,
गंगा की चंचल , चपल लहरें
मैं और मेरी उदासी
भरे दिन रात
अक्सर गंगा किनारे,
हम दोनों ही करते हैं बात
मैं और बनारस के ये
पथरीले घाट।।
गवाह है घाटों में मौजूद सीढ़ियां
गंगा की निर्मल पावन धारा
और मेरे मन के मचलते जज़्बात,
दोनों के मानसिक चीत्कार के
शायद जोहते हैं खुशियों के बाट,
अक्सर गंगा किनारे
हम दोनों ही करते हैं बात
मैं और बनारस के
ये पथरीले घाट।।
बहती धारा कभी
मन बहा ले जाती
भूली -बिसरी यादें
ताजा कर जाती,
कुछ मुरझाएं ज़ख्म
ताजा हो जाते
जो टीसती मुझे
वक्त वक्त पर दिन-रात,
गंगा किनारे हम दोनों ही करते हैं बात
मैं और बनारस के ये
पथरीले घाट।।
सुनीता जौहरी
वाराणसी
स्वरचित व मौलिक