कहानीलघुकथा
चाँद तेरे रूप अनेक
पूर्णिमा का चाँद पूरे निखार पर है। अड़ोसी पड़ोसी के घर सूने पड़े हैं। कोई छत पर उत्सव मना रहें हैं। प्रेमी दीवाने चाँद की रोशनी में नौका विहार को चल दिए हैं। मस्ती के इस माहौल में मायूसी छाई है अमर जी के घर में। सरहद पर हो रही आतंकी मुठभेड़ के समाचार चल रहे हैं।
घर के एक मात्र चिराग अमनवीर की कोई खबर नहीं। पूनम का चाँद भी मानो सूरज की ऊष्मा बिखेर रहा है।
बेसुध सी चाँदनी हाथों की मेहँदी में अमन का नाम छुपाए ॐ त्रयम्बकं का जाप कर रही है। आँसू बहाती माजी दिलासा दे रही है, "बेटी हमारे चाँद पर ग्रहण लगा है। यह काल शीघ्र समाप्त होगा, भरोसा रखो।"
अमर जी अभी अभी हुए ब्याह से अस्त व्यस्त घर को समेटते बुदबुदाते हैं, " क्या मिलता है इनको आतंक फैलाने में। चलो दोनों सास बहू को कुछ चाय नाश्ता कराता हूँ।'
तभी टी वी पर गूंजता है , " सभी सुरक्षित हैं, मेज़र अमन ने खुंखार आतंकी को मार गिराया है। अन्य सभी गिरफ़्तार हो चुके हैं। "
चाँदनी को ग्रहण मुक्त चाँद में अपना चाँद दिखाई देता है, मुस्कुराता हुआ।
सरला मेहता