कविताअतुकांत कविता
*देश का मंत्र गणतंत्र*
यह जंतर है ना मंतर है
देश बनाए पूर्ण स्वतंत्र है सब जन,मन से गण का चयन करें
गण सर्वानुमति से तंत्र का गठन करें
अपने विधि विधान कानून बने
वह संविधान कहलाता है
अपना विधान कहलाता है
एक देश और एक विधान
सर्वसम्मत से होता संचालन
सम्प्रभुतापूर्ण संगठन बने
जन के लिए, जन के द्वारा व जन का
सुदृढ़ शासन, प्रजातंत्र कहलाता है
आज़ाद हुए तो शासन अपना
छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास
नव संविधान गठित हुआ
भारत गणतंत्र कहलाया
सबसे बड़ा लिखित हमारा विधान
मूलभूत अधिकार मिले
कर्तव्यों की कुंजी भी है
दो ही हैं गणतांत्रिक देश
अमेरिका व हिंदुस्तान
गणतंत्र हमारा मंत्र है
इसे जीवनतंत्र बनाना है
अथक प्रयासों से निर्मित है
इसे सँजोकर रखना है
ये भी हमारा ग्रन्थ है।
सर आँखों पर ही रखना है
आतंकी मंशाओं को सख़्ती से कुचलना है
जयहिन्द वंदेमातरम
सरला मेहता