कविताअतुकांत कविता
बुरा क्यूँ मानूँ
तुम मुझसे बात
करना नहीं चाहते तो
मैं बुरा क्यूँ मानूँ........
तुम मुझसे मिलना
नहीं चाहते हो तो
मैं बुरा क्यूँ मानूँ........
तुम मुझसे ख़फ़ा
रहना चाहते हो तो भी
मैं बुरा क्यूँ मानूँ........
तुम मुझसे दूर
होना चाहते हो तो
मैं बुरा क्यूँ मानूँ.........
तुम मुझसे प्यार
नहीं करते हो तो
मैं बुरा क्यूँ मानूँ.........
तुम मुझे बुरा
समझते हो तो
मैं बुरा क्यूँ मानूँ.........
तुम मुझसे अपनी
जरूरतें चाहते हो तो
मैं बुरा क्यूँ मानूँ.........
तुम मुझसे घृणा
करना चाहते हो तो
मैं बुरा क्यूँ मानूँ............
तुम मुझे अपने
क़ाबिल नहीं मानते हो तो
मैं बुरा क्यूँ मानूँ............!!
संदीप चौबारा
फतेहाबाद
१६/०८/२०२०
मौलिक एवं अप्रकाशित