कविताअतुकांत कविता
*महामंत्र गणतंत्र*
यह जंतर है ना मंतर है
यह महामंत्र गणतंत्र है
देश को बनाता पूर्ण स्वतंत्र है
सब जन, मन से गण का चयन करें
गण फ़िर सर्वानुमति से तंत्र का गठन करें
विधि विधान कानून बने
विधान हमारा कहलाता
यह संविधान कहलाता है
यह जंतर है,,,,,,
एक देश और एक विधान, सर्वसम्मत होता है संचालन
सम्प्रभुतापूर्ण संघठन बने
जन के लिए, जन के द्वारा व जन का सुदृढ़ शासन,
प्रजातंत्र कहलाता है
लोकतंत्र कहलाता है
शासन अपना कहलाता
यह जंतर है,,,,,
छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास, नव संविधान गठित हुआ
सबसे बड़ा लिखित हमारा विधान, मूलभूत अधिकारों कर्तव्यों की कुंजी भी है
गणतंत्र हमारा महामंत्र
इसे जीवनमंत्र बनाना है
ये ग्रन्थ महान हमारा है
यह जंतर है,,,,
सरला मेहता