कविताअतुकांत कविता
बस छोटी सी दरकार*
*मानवता के पुजारी हमारे भारत देश में
करते नहीं कभी इन बुजुर्गों पर अत्याचार
*सरकार व कई सामाजिक संस्थाएँ देश की
करते रहते हैं सदा रैनबसेरों का माक़ूल इंतज़ाम
*फ़िर क्यूँ लावारिस भिक्षुकों पर अत्याचार?
ट्रकों में जानवरों सा भर कर फेंक दिया जाता है
*अटाले से सामान सहित यूँ सड़कों पर
जो स्वयं चलने फिरने में भी हैं असमर्थ
*बिना किसी सहारे के ढो रहे हैं ज़िन्दगी
फ़िर सहानुभूति जताने ठूस देते रैनबसेरों में
*क्या हरे भरे देश में नहीं है कोई ठोर इनका
छत, तन पर वसन व बस दो जून रोटी
की छोटी सी दरकार इन्हें जीने के लिए
सरला मेहता