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तड़पती हूँ - Arvind Singh (Sahitya Arpan)

कविताछंद

तड़पती हूँ

  • 186
  • 7 Min Read

नमन-------साहित्य अर्पण एक पहल
आयोजन----चित्राधारित प्रतियोगिता
तिथि----------------30/01/2021
वार-------------------------शनिवार
विधा-----------विधाता छन्द में गीत
मापनी-1222 1222 1222 1222

#तड़पती_हूँ

लगी हूँ आज छाती से,मुहब्बत में तड़पती हूँ।
सुनो प्यारे कहूँ दिल से,तुम्हारे बिन मचलती हूँ।।

समंदर दर्द का भीषण,सनम बोला नहीं जाता।
कसम खाऊँ कहूँ तुमसे,दुखी उर रह नहीं पाता।।
बचूँ कैसे बताओ प्रिय,तुम्हारा पग पकड़ती हूँ।
लगी हूँ आज छाती से,मुहब्बत में तड़पती हूँ।।

उठाओ दृग जरा प्यारे,बचा मुझमें नहीं दमखम।
बची है शेष हड्डी अब,रहूँ खोयी कहीं हरदम।।
गरम साँसें निकलती हैं,बिना पावक सुलगती हूँ।
लगी हूँ आज छाती से,मुहब्बत में तड़पती हूँ।।

उजाला भी गया प्यारे,अँधेरी रात घर आयी।
नहीं आते महल में तुम,उदासी है इधर छायी।।
दिली बैरी बनी रजनी,सदा बिजली चमकती है।
लगी हूँ आज छाती से,मुहब्बत में तड़पती हूँ।।

रुके हो क्यों जरा बोलो,करो बातें अभी प्यारी।
छिपाओ तुम मुझे उर में,हटे बदरी सभी कारी।।
दिलीं बातें कहूँ तुमसे,दुखी दिन रात रहती हूँ।
लगी हूँ आज छाती से,मुहब्बत में तड़पती हूँ।।

निहारूँ पग तुम्हारा ही,नजर आते नहीं हो तुम।
बताओ तुम जरा मुझसे,कहाँ प्यारे हुए हो गुम।।
नहीं मैं दूर रह सकती,दिली जज्बात कहती हूँ।
लगी हूँ आज छाती से,मुहब्बत में तड़पती हूँ।।

अरविन्द सिंह "वत्स"
प्रतापगढ़
उत्तर प्रदेश

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Vinay Kumar Gautam

Vinay Kumar Gautam 3 years ago

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