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शक्ति रूपेण संस्थिता - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

शक्ति रूपेण संस्थिता

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शक्ति रूपेण संस्थिता

मध्यरात्रि में पर्यटन बस सामान्य गति से जा रही थी। घुप अँधेरा, ऊपर से जंगली जानवरों की आवाज़ें। सारे यात्री सहमे बैठे अपने इष्टदेवों को याद कर रहे थे। वृद्ध साथ के युवाजन को सांत्वना दे रहे थे।
तभी सांमने पड़ी झाड़ियों से हिचकोले लेती बस को रोकना पड़ा। और छः सात पिस्टलधारियों ने कंडक्टर को गेट खोलने को मज़बूर कर दिया। सक्षम यात्री मौका देख भाग निकले, बची दो किशोरियाँ व तीन वृद्धाएँ।
रुपए ज़ेवर लूटकर दो जवान लुटेरों को छोड़ शेष सब बस से उतर गए। सीट के पीछे दुबकी लड़कियाँ उनकी नजरों से बच नहीं पाई। वे उनकी ओर लपकते,तब तक माला जपती वृद्धाओं ने लोहे की रॉड्स नीचे से सरका दी।
दोनों लड़कियां डर से कांप रही थी। दो दादियां हनुमान चालीसा ऊँची आवाज़ में गाने लगी, "भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे।" एक वृद्धा जपने लगी, " या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,,,"
सरला मेहता

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दादी की परी
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