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साबरमती के सन्त - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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साबरमती के सन्त

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*साबरमती के सन्त*

एक अदना सा सामान्य व्यक्ति दो दो सदियों का संत, नायक बन सकता है। मोहनदास करमचंद गांधी, बापू से महात्मा और राष्ट्रपिता बन गए।और स्वर्णाक्षरों में अमर इतिहास बन गए।
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल। सत्य और अहिंसा के बल पर मात्र धोती व शॉल में चल पड़े थे। कारवाँ बढ़ता गया, एक लाठी टेकते हाथ के पीछे। जेल गए, यातनाएँ सही किन्तु दीवानों की टोली थमी नहीं, डरी नहीं। लगे रहे सारे मुन्नाभाई।और सौप गए स्वतन्त्रता की सौगात। कह गए,,,हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के। और हे राम कहते चल दिए अंतिम सफ़र पर।
बापू द्वारा प्रचारित समसामायिक सिद्धांत सदा के लिए दस्तावेज़ बन गए। मितव्ययता, बालिका शिक्षा, स्वच्छता सादगी, सहयोग आदि बातें वक़्त की ज़रूरत है, इसे नकारा नहीं जा सकता है। हे बापू ! हमारी भी एक प्रार्थना सुन लो,,,,,
आज धरा पर है छाया
अनाचार आतंकी साया
नहीं सताते हैं किसी को
मित्रता का ही हाथ बढ़ाते
ग़र कोई फ़िर भी ना माने
सबक उन्हें सिखाना होगा
बुरा नहीं बोले देखें व सुने
और बुरा नहीं सोचेंगे हम
सब सीखें मानकर चलेंगे
झंडा ऊँचा सदा ही रखेंगे
जयहिंद,जयहिंद,जयहिंद
सरला मेहता

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