कविताअतुकांत कविता
शुभ दिवस --
बसन्त पंचमी का अवसर बना यादगार !
जब मां सरस्वती की कृपा हुई
आज ही के दिन मेरे बेटे का विवाह हुआ ,
मुझे मिली बेटी !
कविता ---महकें घर आंगन
मेरे आगंन ऋतुराज पधारे
बसंत पंचमी के दिवस पर
महके मेरे घर का आगंन
आज बना सुन्दर योग
सुन्दर सजीले दोनों मेरे प्रिय..
आज रगें रंग बसंत मे
हो गये पीले दोनों के हाथ
पीले पीले झरते पत्ते
खेतों मे सरसोंफूली
धरा ओढे चुनर पीली
महुआ महकें ,खिलें पलाश
फूलों से लदी बगियां सब
लो आया माघ मधुमास
शीतल चले पुरवाई
मीठे स्वर मे गाये कोयल
खग वृंद करें किलोल.....
गुलाबी क्षितिज का कोना कोना
झरने लगा खुशबु का झरना
उषा की अरूणिम आभा मे
किरणों ने है ख्वाब सजायें
बसंती सपने आखों मे छाये
मेरे आंगन खिल उठे गुलाब
सुन्दर सजीलें दो चेहरे
निशान्त ,शिल्पी....
हर मन मे नेह जगा कर
प्रीत की लिए नयी उमंग
प्रेम की गागरी छलक रही
खुशबु बाहों मे लिपट रही
धरती से अंबर ,छाया उल्लास
नव दुल्हन का रुप देख कर
ठहर गया चंदा भी पल भर
देख कर सुन्दर दो चेहरें
सितारें छेड़े मधुर रागनी
अपने भाग्य को सराहूं
मेरे घर को किया बसंती
प्रेम के बिखरें मोती
बेटी सा स्नेह दिया
मुख से निकले आशीष
ये
तुम सपनों का संसार सजाओं
प्रेम रहे सीता राम सा
जोड़ी बनी रहे अनुपम ...
कुम कुम सजे भाल पर
हर दिन हो बसंती ,
बिखरें रंग सुनहरें
हर दिन हो त्यौहार ........!
मेरे आंगन ऋतुराज पधारे
महके बसंत मेरे आंगना .....।
मां सरस्वती को करू बार बार प्रणाम
बना रहे दोनों पर मां का आशीर्वाद ......।
बबिता कंसल
मौलिक रचना
दिल्ली