कवितालयबद्ध कविता
#चित्राक्षरी_प्रतियोगिता
तुम और मैं
तुम मुझमें और मैं तुझमें ऐसे समायी।
जैसे नदी - सागर के आगोश में आयी।।
एक-दूसरे के पूरक दो जिस्म एक जान।
धड़कन- धड़कन को दे रही है सुनायी।।
हो रहा रूह से रूह का अनोखा मिलन।
लगे जैसे प्रेम की पावन रूत है आयी।।
बस ऐसे ही थम जाये ये पल यहीं पर।
उस रब से मांगू मैं तो अब यही दुहायी।।
दीप " से बाती का है कुछ अटूट बंधन।
अंधेरों को भी रोशनी की राह दिखायी।।
दीप्ति शर्मा "दीप"
जटनी( उड़ीसा)
स्वरचित व मौलिक