कविताअन्य
गीत
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तेरी आंखें जहां ठहर गई
मेरी आंखें भी वहीं ठहर गई
तूं अभी अभी तो यहीं पर थी
और अभी अभी तूं कहां गई
तेरी राहें तकते मैं क्यूं थक गया
तूं ये बता कि चलते-चलते ही
मुझे अकेला छोड़कर कहां गई
ये शहर भी अब महफूज़ नहीं
वो शहर भी अब महफूज़ नहीं
तूं जिस शहर गई क्या वो जगह
तेरे रह-गुजर के लायक है महफूज़ है
मेरी बातों का तूं बुरा ना मान
मैं तेरी बातों का बुरा न मानूं
कि तूं भी आ कि मैं भी आ
आ मिलके दोनों मशविरा करें।
मेरी आंखें जहां गई वहीं पे ठहर गई
तेरी आंखें भी क्या वहां ठहर गई
क्या कोई कोर कसर अभी बाकी है
कि कुछ और होना बाकी है
आ पास बैठ दो बातें कह दो बातें सुन
कितनी हसीन ये दिन और रात है
यहां दिन में चांद निकल गया
क्या वहां रात में सूरज निकल गया
तेरी आंखें जहां ठहर गई
मेरी आंखें भी वहीं ठहर गई।
© भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"