कविताअतुकांत कविता
एक दीया जलाना है
शहीदों की कब्र पर
हँसते हँसते झेल गए
दुश्मन के वार को
पर मातृभूमि पर आँच न आने दी
एक दीया जलाना है
उस माटी पर
नौनिहालों के जन्म का सुख जिसने पाया
उनकी खिलखिलाहटों से उर्वर हुई
एक दीया जलाना है
उस देहरी पर
जिसे चूम सीमा के रक्षक निकले
धन्य है वो आँगन, जिसने
शहीदों की क्रीड़ा का सुख भोगा
तारों ने जहाँ आँख मिचौनी खेली
एक दीया जलाना है
उम्मीद का, आशा का , विश्वास का
और उन राह तकती आँखों का
जो रणबांकुरों के लौटने की आस लिए
देहरी पर ही टिकीं हैं अब तक
एक दीया जलाना है
हिन्द की आन का
हिंदुस्तान की शान का
हिन्द की सेना के नाम का
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अनामिका प्रवीन शर्मा
मुम्बई