कविताअन्य
"गीत तुम्ही पर सब लिख देता, गर तुम मुझको अपना लेती..
और सभी से कहता फिरता, प्यार मोहब्बत जिंदाबाद..!!
तुम गर हाथ मेरा छू देती तो तन चंदन हो सकता था..!
तुम आ जाती पास मेरे तो मौसम सावन हो सकता था..!
मेरे कोरे कोरे सपनों की रतिके रँगरेज तुम्हीं थी..!
तुम रँगते अपने रंग में तो मन वृंदावन हो सकता था..!
बैठ उसी तट पर हम दोनों एक घरौदा फिर से बुनते..
और बताता चिल्लाकर मैं रहे हमारा घर आबाद..!!
प्यार मोहब्बत जिंदाबाद..!!१!!
मैं तो एक मकाँ भर ही हूँ किन्तु हमारी माटी तुम हो..!
मैं हूँ जीवन की अभिलाषा और मेरी परिपाटी तुम हो..!
जिसके नर्म धरातल में ही नींव बनाकर उच्च शिखर पर..
मैं पहाड़ सा टिका हुआ हूँ प्रिये मेरी वह घाटी तुम हो..
लेकिन अब क्या तुम्हें बताना जब तुम नही जानना चाहो..
शायद प्यार मोहब्बत वाले दिन अब तुम्हें रहे न याद..!!
प्यार मोहब्बत जिंदाबाद..!!२!!
किन्तु बने एहसास खिलौने और इश्क़ बन गया तमाशा..!
उपापोह बन गयी जिंदगी फैल गया हर ओर कुहासा..!
उन लम्हों को जिनके सपने हमने साथ सजाए मिलकर..
सपने सभी बिखरते अपने रहा देखता हुआ रुहाँसा..!
चले गए अपनी दुनिया में करके मुझे अकेला जब तुम..
आज तलक करता फिरता हूँ तिल-तिलकर खुद को बर्बाद..!!
प्यार मोहब्बत जिंदाबाद..!!३!!"
✍️ कुमार आशू