कविताअतुकांत कविता
# एक दीया शहीदों के नाम जलाएँ
27,1,21
इक दीया जलाएँ
चल दिए थे कफ़न बांधे
बन्दूक वो काँधे उठाए
माँ भारती के नाम का
विजय टीका है लगाए
आओ उनकी याद में हम
इक दीया क्यूँ ना जलाएँ
शत शत नमन रण बांकुरों को,,,,
दुलारा माँ बाप का था
बहन का वो ध्रुव तारा
सजनी की मेहँदी बना
माँग का सुहाग था वो
आओ उनकी याद में हम
इक दीया क्यूँ ना जलाएँ
शत शत नमन रण बांकुरों को,,,,,
सरहद पे वो तैनात था
बर्फ़ीली उन वादियों में
सनसनाती गोलियाँ खा
भूख-प्यास सब भुलाके
आओ उनकी याद में हम
इक दीया क्यूँ ना जलाएँ
शत शत नमन रण बांकुरों को,,,,,
खतरों की परवाह ना कर
दुश्मनों के छक्के छुड़ाता
नदियाँ खून की है बहाता
सबसे आगे बढ़ता जाता
आओ उनकी याद में हम
इक दीया क्यूँ ना जलाएँ
शत शत नमन रण बांकुरों को,,,,,
बलिदान देकर जान का
ताबूत में सदा को सो गए
सौरभ विक्रम नचिकेतों
विभूति से थे लाल माँ के
आओ उनकी याद में हम
इक दीया क्यूँ ना जलाएँ
शत शत नमन रण बांकुरों को,,,,,
दूध भींगे पल्लू से माँ ने
लहू पोछ माथे को चूमा
माँग सजनी की थी सूनी
सिंदूर साजन पर लुटाया
आओ उनकी याद में हम
इक दीया क्यूँ ना जलाएँ
शत शत नमन रण बांकुरों को,,,,,
सरला मेहता