कविताअतुकांत कविता
# एक दीया शहीदों के नाम 26,1,२१
प्रतियोगिता
शत शत नमन
शत नमन रणबांकुरों को
देश के उन लाड़लों को
जो मुसाफ़िर थे जहां में
वो फ़रिश्ता बन गए हैं
नम हुई आँखों से माँ ने
विजय टीका है लगाया
भर के बाहों में पिता ने
आशीषों का गीत गाया
सबकी आँखों का जो तारा
देश हित में दे रहे हैं
बहन से राखी का बंधन
रेशमी अहसास बोला
आते सावन की प्रतीक्षा
और पीपल का वो झूला
हैं लगे जो घाव दिल में
आंसूओं से धो रहे हैं
मेहँदी हाथों में सजी है
घुंगरू पायल के छनकते
लाल चूनर के सितारे
पिया मिलन को तरसते
खनखनाते चूड़ी कंगन
तुमको विदाई दे रहे हैं
तभी सुदूर वादियों से
युद्ध का संदेश आया
मात देकर शत्रुओं को
ताबूत में सो गया वो
हंसते हँसते जो गया था
कांधों पे देखो आ रहा है
माँ का आँचल तरबतर है
सारे लहू को पोछ डाला
चूम के माथा बहु का
एक बार फिर पी से मिलाया
बंद कर दो शोर सारे
लाल मेरा सो रहा है
आशाएं बहनों की टूटी
लाड़ला तू सबका था
रक्षा बंधन के सब वादे
झूठे साबित कर गया तू
पिता काधों पर उठा
श्मशान लेकर जारहे हैं
लाल चूनर उड़ के लिपटी
तिरंगा ओढे पिया से
चूड़ियां निस्तब्ध हैं
ठहर थोड़ा और जाते
हर जनम मिलते रहेंगे
अंश अपना दे गया है।
सरला मेहता
मौलिक