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मैं नीलिमा - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मैं नीलिमा

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मैं नीलिमा

नीलाभ नभ के बादल
जब वे खोलते हैं गठरी
नीला सा ये मेरा आँचल
लहराने लगे विहस कर

कभी हिमनद हैं पिघलते
बन जाते हैं झरने व सोते
अठखेलियाँ करते करते
धरती पर आ मैं उतरती

मैं तो ठहरी धवल धारा
पर आसमाँ की ये छाया
असमानी चूनर ओड़ाती
मैं नीलिमा बन शरमाती
सरला मेहता

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