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हम सब एक हैं - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायक

हम सब एक हैं

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जय नदी,जय हिंद
27,7,20
सोमवार
एकांकी,,,बोलती प्रकृति

हम सब एक हैं

(गर्मी के दिनों में नदी तालाब समुद्र , पहाड़, पेड़ पौधे व जीव जंतु ,,,इन चार समूहों में होड़ लगी है,,,सबसे बड़ा कौन ?)
नदी तालाब समुद्र, " भई आप लोग कुछ भी कहो, बड़े तो हम हैं। देखो जी, बिन पानी सब सून।"

पेड़ पौधे भला कहाँ पीछे रहने वाले , आत्मविश्वास के साथ अपना पक्ष रखा, " हम बड़ी बात तो नहीं करते।किन्तु हम ना हो तो सारे जीव जंतु भूखों मर जाएंगे। समझे आप। "५

नदी तालाब अपने पिता समुद्र के साथ इतराते हुए गरजे ,५
" अच्छा जी बगैर जल के पनपोगे कैसे ? और ये पहाड़ महाशय,धरती के बोझ,इन पर तो बस भेड़ बकरियां सैर के बहाने हरी घांस का नाश्ता करने आती हैं।"

पहाड़ बेचारा रुंआसा हो हाथ जोड़कर बोला , " मानता हूँ मैं निठल्ला बेकाम हूँ परन्तु समुद्र से आती पनीली हवाएं मुझसे ही टकराती हैं। कुछ समझे ।"

जीव जंतु अपनी बुद्धि पर इतराते हुए बोले , " ओह ! यह कौनसी बड़ी बात। हवाओं को तुम रोकते जो हो । वे बेचारी नाज़ुक नार सी तुमसे टकरा कर वहीं बरस जाती हैं।"

पहाड़ अपनी मूंछो पर ताव दे गरजा," अरे मूर्खों,जानते हो मेरे कारण ही हमारा उत्तर का मैदान हरा भरा है। मैं विन्ध्याचल ना होता तो पड़ोसी देश तरबतर हो गया होता। हम्म्म्म। हिमालय तो देश का रक्षक है।'

पेड़ पौधे बीचमें उचक पड़े,
" अरे भूल गए,हम ना हो तो बरखा रानी भी रूठ जाए।"

जीव जंतु समूह से जीवात्माएं
समझौते के अंदाज़ में बोली,
" चलो ठीक है जल ही वाष्प बन पहाड़ों से टकरा बूंदोंकी सौगात देते हैं।किंतु,,,बिना हमारे इनका उपयोग कौन करेगा ?"

(वादविवाद बढ़ता देख पहाड़ मंच सम्भालता है)
" भाइयों व बहनों , बेकार की बहस से क्या फ़ायदा । मानव हाथ की पाँचों उंगलियां मिलकर ही कोई कार्य कर सकती है।"
विशाल समन्दर भी आगे आया, " चाहे पहाड़ निठल्ला हो,तालाब का पानी गंदा हो,नदी रानी चंडी बन तबाही मचादे और मेरा पानी खारा।फिर भी हम सब मिलकर ही सृष्टि का निर्माण करते हैं।"

जीव जंतु भी समझाने लगे,
" हाँ हाँ , हमारी पृथ्वी गृह भी
हमारे रहने लायक इसीलिए है क्योंकि यहां जल थल वायु
संतुलित मात्रा में हैं।"

और चारो समूह हाथ में हाथ ले एक साथ चिल्लाए," हम सब एक हैं,कोई बड़ा छोटा नहीं।"
सरला मेहता

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दादी की परी
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