कविताअन्य
नारी को प्रणाम है
वो करती जगत कल्याण है
रखती सबका ख्याल है
फिर क्यों नारी को
मानते अभिशाप है
नारी से तो चलती जीवन की पतवार है
नही लटकती घरों पर दुख की तलवार है
करती सभी का सम्मान है
नारी ही हर घर का अभिमान है
इस सृष्टि का आधार है
खुद मैं पूरा संसार है
खेल खिलौने में बसे उसके प्राण है
बाहर की दुनिया से अभी वो अनजान है
लेकिन उस नारी की तलवार में
अभी भी चढ़ी धार है
अभी भी वही हुंकार है
दुष्टों का करती वो संहार है
वो नारी खुद ही कालिका का अवतार है
जगत के कल्याण के लिए वो त्याग भी देती प्राण है
बोले ये समाज के लोग नारी तो महज एक
घर सजाने का सामान है
वह नारी करती संघर्ष तमाम है
कभी तो समाज में उसका भी बढ़ेगा मान
जिसकी कोशिश करती रहती है वह तमाम
ऐसी नारी शक्ति को मेरा बारम्बार प्रणाम
नाम-नेहा त्रिपाठी
स्थान-दिल्ली
स्वचरित एवम मौलिक