कविताअतुकांत कविता
विषय,,,ख़्वाब
नींद में ख़याल आना ख़्वाब कहलाता
रूहानी तस्वीरें जो दिखती हैं ख़्वाब कहलाता
सपनों का कोई आधार नहीं होता है
हक़ीक़त बन न पाता है वही ख़्वाब कहलाता
यूँ आते जाते बुलबुले से बिखर जाते
जो गुज़रा बीता सपना है वही ख़्वाब कहलाता
ग़र दर्द ए ग़म की परछाई छा जाए
जीने के मायने जो दे जाए वो ख़्वाब कहलाता
चपला,रोशनी कतरा जो छोड़ जाती है
क्षणिक आभास के लम्हें वही ख़्वाब कहलाता
बिखेरे रश्मियाँ उम्मीदों की जीवन में
गुनगुनी धूप की गरमाई ही ख़्वाब कहलाता
मंज़िलें मक़ाम चलचित्र से दिखते हैं
हक़ीक़त से लगते हैं वही ख़्वाब कहलाता
खुली आँखों से जो हम देखते सपने
उन्हें अंजाम देने का जुनून ख़्वाब कहलाता
सरला मेहता