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जय नदी,जय हिंद
29 जून 2019
"नमामि देवी नर्मदे"
माँ नर्मदा नदी का उद्गम विंध्याचल पर्वत है ,जो अमरकंटक जिला अनूपपुर म प्र में है। चूंकि विंध्य हिमालय से भीपूर्व का है अतः पावन नर्मदा का अवतरण माँ गंगा से भी पूर्व का है।नर्मदा के तटवर्ती होशंगाबाद व भीमबेटका में 20,000 वर्ष पूर्व के प्रागेतिहासिक अवशेष
उपलब्ध हैं। माँ नर्मदा की ऊंचाई 3,438 फीट तथा लंबाई 815 मील है। भारतीय उपमहाद्वीप की पांचवीं लंबी नदी है।कृष्णा गोदावरी के बाद भारत के अंदर बहने वाली तीसरी लंबी सरिता है। यह अपने उद्गम से 1,312 कि मी बहकर खम्बात की खाड़ी अरब सागर में समा जाती है। यह म प्र,महाराष्ट्र व गुजरात राज्यों के अमरकंटक,डिंडोरी,मंडला
जबलपुर,होशंगाबाद,बड़वानी
झाबुआ,ओम्कारेश्वर,बड़ोदरा
राज पिपला,धरम पुरी तथा
भरूच शहरों की प्यास बुझाती है।और तो और सिंहस्थ के समय पावन अवंतिका की क्षिप्रा को भी अपने जल से भरपूर करती है।
यूँ तो माँ नर्मदा बड़ी ही दयालु व उदार मना है किंतु अपनी बहनों से विपरीत दिशा में बहती है।कुँवारी कन्या नर्मदा को सोनभद्र नामक नद से प्यार हो जाता है। दोनों ने जीवन भर साथ निभाने का वादा भी किया था। किंतु एक बार वह अपनी
दासी जुहिला,,मंडला के पास
बहने वाली आदि वासी नदी,,
को सजा धजाकर अपने प्रेमी के पास भेज देती है।अतः नर्मदा विवाह की वेदी तक पंहुच नहीं पाती है और रूठकर विपरीत दिशा में बहने लगती है। कहते हैं आसपास के क्षेत्र में परिक्रमा के समय अभी भी विरहिणी नर्मदा का करुण कातर स्वर
लोगो को सुनाई देता है।
नर्मदा सदा कुँवारी रूपसी रही।अतः इसे गंगा से भी पवित्र माना गया है।कहते हैं नर्मदा का जल तत्काल उसी क्षण पवित्र कर देता है। यमुना का जल एक सप्ताह,
गोदावरी का तीन दिन और गंगाजल पावनता लाने में एक दिन लेता है।
पर्यावरण की बात करें तो नर्मदा घोर जंगल तथा घनघोर पहाड़ियों के बीच से गुजरती है। दंडकारण्य के प्रसिद्ध जंगल इसे धानी चूनर ओढ़ाते हैं।यह आर्यावर्त की
सीमारेखा बन विदेशियों को दक्षिण तक पंहुचने नहीं देती है।
यह महान पवित्र नदी है।अत्यधिक वनों व चट्टानों में बहने के कारण ऋषियों ने इसे रेवा नाम दे दिया। इन्हीं वनों में कपिल, भृगु,मार्कण्डेय आदि के आश्रम थे। तपोभूमि के कारण
इसकी परिक्रमा का भी बड़ा महत्व है।पूर्ण परिक्रमा में 3वर्ष,3माह व 13 दिन लगते हैं।ओम्कारेश्वर सबसे बड़ा तीर्थ है,एक जयोतिर्लिंग यही पर हैं।महेश्वर के पावन घाट सर्वोत्तम हैं।होशंगाबाद में इसके निर्मल चौड़े पाट का तो कहना ही क्या।यहां माता नर्मदा का मंदिर भी हैं।जगह जगह पर घाट मंदिरों से सजे पड़े हैं।कावड़ियों का जत्था
नर्मदा व क्षिप्रा दोनों नदियों के पवित्र जल का मिलन कराता है।
पर्यटन स्थल माँ नर्मदा को और भी सजा देते हैं। उद्गम स्थल पर कपिल धारा व दूधधारा तथा जबलपुर में धुँवाधार प्रपात आकर्षण के केंद्र हैं।
माँ नर्मदा अपना स्वरूप बदलती रहती है ।चट्टानों में कूदती फांदती रेवा,निकुंजों में धसती, चट्टानें तराशती दिन रात भागती रहती है।इसके अनेक रूप हैं,,वर्षा में उफान,बसन्त में मंथर गति और ग्रीष्ममें सूखकर काँटा रह जाती है,बस सांस भर ले पाती है।शूलपाण की झाडी तो वृक्ष विहीन हैं। इसके तट
वन व जन जातियों बैंगा,भील
गौंड आदि की लीला भूमि भी है।धावड़ी कुंड से निकले शिवलिंग सर्वत्र पूजे जाते हैं।
नर्मदा अपने नाम को सार्थक करती है,,नर्म यानी आनंद तथा दा अर्थात दाता।
परन्तु वह संघर्षशील रही,
उसने सरल नहीं दुष्कर मार्ग चुना।परन्तु आज वह आंसू बहा बहाती है , ,,भरूच कभी
पश्चिम भारत का सबसे बड़ा
बंदरगाह था,कई जहाज लगे रहते थे पर आज सूना है। तटवर्तीय प्रदेश जंगल कटने से उतने रमणीय नहीं रहे।जहां जंगली जानवरों की गर्जना व पक्षियों का कलरव सुनाई देता था,अब बस मानव का ही राज है।स्वच्छंद
हरिणी को बांधों में बांधा जा रहा है पर मानव हित में उसने यह भी स्वीकार कर लिया।नहर सिंचाई बिजली मछली
पालन कई धंधे शुरू हो गए।परन्तु माँ नर्मदा वृद्धा होकर भी अभी युवती ही है। ऐसी नर्मदा मैया को शत शत नमन।
सरला मेहता