कहानीलघुकथा
# इक़रार
प्रतियोगिता
15,1,21
विषय इक़रार💐
शीर्षक
मेरा पिया घर आया💐
प्रवाह और धारा पड़ोसी के साथ सहपाठी भी हैं। जन्माष्ठमी पर इन दोनों नासमझ बच्चों को प्रति वर्ष राधा कृष्ण बनाया जाता है। शायद इसी कारण सोचने लगे कि वे एक दूसरे के लिए ही बने हैं। साथ साथ पले बढ़े।
"धारा, धारा ! कहाँ हो ? बारहवीं में तुमने टॉप किया है।" प्रवाह ने मिठाई खिलाते ख़ुशी जताई," और...तुम ? " प्रवाह बोला, " मेरी दूसरी रैंक। "
कॉलेज दूर होने से प्रवाह उसे अपनी बाइक से ले जाता। हँसते खेलते कब दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला। मित्र लोग फ़िकरे कसने से पीछे नहीं रहते, "प्यार हुआ इक़रार हुआ"
और दोनों ने जीवनभर साथ निभाने का वादा कर लिया। धारा के पापा के अचानक देहांत से इस इक़रार को विराम लग गया।
पी जी करने के बाद ही धारा को स्कूल की नौकरी भाई की पढ़ाई व माँ की देखभाल के लिए करनी पड़ी। प्रवाह को विशेष छात्रवृति पर विदेश में डॉक्टरेट करने का अवसर मिला। अकेले पापा को छोड़ कर कैसे जाए ? ऐसे में धारा आगे आई, " क्यों, वो मेरे भी पापा हैं। सब देख लूँगी, मैं हूँ ना। "
कई लड़कियों के रिश्ते आए किन्तु प्रवाह ने साफ़ मना कर दिया, "पापा, आप सब जानते हैं। फ़िर भी...। "
धारा के मौन की अति से कहीं प्रेम की इति ना हो जाए...इसी आशंका से व्यथित प्रवाह अपने दिल की भावनाएँ धारा के समक्ष व्यक्त करता है, " मैं आखरी साँस तक तुम्हारा इंतज़ार करूँगा। जब तक धारा आगे नहीं बढ़ेगी, प्रवाह रुका रहेगा।" और भरी आँखों से दोनों विदा लेते हैं।
धारा स्वयं को दोषी मानती है। कैसे प्रवाह को खुशियाँ दे ? वह उसके पापा से मशविरा करती है। पापा भी तो बच्चों को ख़ुश देखना चाहते हैं , "ऐसा करो बेटा, " माँ व भाई के साथ तुम्हारा अपने होने वाले ससुराल में स्वागत है। "
प्रवाह के आने से पूर्व सब मिलकर ब्याह की तैयारी कर लेते हैं। प्रवाह
से पापा कहते हैं कि वह अच्छे से तैयार होकर आए।
जैसे ही प्रवाह आता है , घूंघट ओढ़े दुल्हन वरमाला डाल देती है। शहनाई गूंजने लगती है, " मेरा पिया घर आया..."
सरला मेहता