लेखआलेख
छोटी खुशियाँ,,,
छोटी समस्या,,,
कहते हैं,,,छोटी छोटी खुशियाँ गवाओं नहीं, भर लो उन्हें मुट्ठी में। हम बड़ी खुशियों की चाह में कई समस्याओं को न्योता दे देते हैं।
समस्याओं का स्वभाव भी कुछ ऐसा ही है। वो कछुए और खरगोश की कहानी, याद है न। जी, जीता कौन था ? मंथर गति वाला कछुआ। क्यूँ ? क्योंकि थकान मिटाने के लिए उसने पेड़ की छाँव में थोड़ा विश्राम जो कर लिया था। और हवा से बात करने वाले खरगोश मिया थकते, पसीना बहाते हार गए।
मंजिल की राह में आने वाली छोटी छोटी समस्याओं को दरकिनार करना यानी हार को स्वयं ही आमंत्रण देना है। एक और सीख देने वाली कहानी सुनिए,,,एक पिता पुत्र रेस लगाते हैं , पहाड़ी पर चढ़ने की। कुछ दूरी पर उनके जूतों में कंकर भर जाने से चुभने लगते हैं। पिता रुककर कंकर निकाल पुनः सामान्य रफ़्तार से चढ़ने लगते हैं। नादान पुत्र को कंकर की चुभन मंजूर है। किंतु एक मिनिट रुककर जूते साफ़ करने में वक़्त जाया नहीं करना चाहता। परिणाम वही, पुत्र की हार।
अतः यूँ ही चलते चलते कुछ करते भी चले। एक सजग नागरिक होने का अहसास हमेशा याद रहे।
पार्क में टहल रहे हैं , सामने पड़े पत्थर या कांटे को नज़रअंदाज़ ना करें। दो पल लगेंगे हटाने में। सड़क पर जा रहे हैं , केले का छिलका दिखाई दे तो, क्यों न उठाकर कूड़ादान में डाल दें। आप नहीं, कोई और तो फ़िसलने से बच जाएगा।
ये सब नुस्खे अपनी आभासी दुनिया में भी याद रखें। किसी रोते को हंसाना व उदास को खुश करना बस दो मिनिट का काम है, घर में भी और बाहर भी।
जी हाँ, यदि यही आदत घर में भी प्रत्येक सदस्य अपनाए तो,,अरे अपना घर भी व्यवस्थित रहेगा। हींग लगे ना फ़िटकरी, रंग चोखा।
सरला मेहता
दिल की कलम से,,,