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कारवाँ गुज़र गया - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

कारवाँ गुज़र गया

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  • 5 Min Read

आ0 कवि नीरजजी को समर्पित
उन्हीं की तर्ज़ पर

कारवाँ गुज़र गया

भोर हुई सपने सजे
प्राणों का तार बजे
पेड़ों के झुरमुठ में
पंछियों का क्रिया कलाप देखते रहे,,,,,
कारवाँ गुज़र गया,,,,
मंदिरों के द्वार खुले
पूजन की थाल सजे
दीपक की जोत जले
घनघनाती घंटियों के बोल
गूंजते रहे
कारवाँ गुज़र गया,,,,,
गाएँ रंभाने लगी
बछड़ों में होड़ लगी
आँचल में माओं के
नेह भरी ममता का खेल
देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
शीतल बयार बहे
जूही हरसिंगार खिले
भ्रमर बड़े मनचले
पुष्प के पराग का पान
देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
नदियों में नीर बहे
झरनों की प्रीत कहे
नाव के विहार में
पतवारों का पानी में खेल
देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
अलसाई पलके हैं
लोरी नींद लाई है
पूनम की रात में
असमानी तारों में ख़्वाब
देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
गजरा ना चूनर हैं
ये कैसी दुल्हन है
ना माथे पे बिंदिया है
द्वार खड़ी डोली का श्रृंगार
देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
क्षण भंगुर जीवन है
आना और जाना है
साँसों के खेल में
जीवन का मृत्यु से संघर्ष
देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
सरला मेहता

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