कविताअतुकांत कविता
#चित्र_आधारित
" अपनों के सपने "
वो निकल जाता है मुँह अंधेरे,
कस कर मफलर लपेटे,
अपने सपने आँखो मे बसाये....
ठंडी हवा के थपेड़ों से,
मजबूत होते उसके इरादे...
कि नहीं झेलेंगे उसके बच्चे,
इस सर्द हवा के झोंके...
बैठा नौनिहालों को अपने रिक्शे...
पहुँचा आता विद्या के द्वारे,
यह उम्मीद मन मे जगायें...
कि एक दिन उसके भी बच्चे,
माँ सरस्वती को मना पाये...
ना गर्मी की परवाह उसे,
ना प्यास की चिन्ता उसे,
पिता है ना वो तो...
उसे तो बच्चों के सूरज को गर्म रखना है,
उसे तो बच्चों के बादल में पानी भरना है,
सह कर सारे कष्ट.....
उसे तो बच्चों का कल बनाना है!!
महिमा भटनागर
स्वलिखित एवं मौलिक
कोलकाता