कहानीलघुकथा
*प्रेम की इति...
सयानी...सुधा की प्यारी, समझदार सखी परेशान है। कैसे अंजाम दे सुधा व चन्दर की प्रेम कहानी को ? दोनों एक दूसरे को दिलोजान से चाहते हैं। चन्दर पी एच डी करके पुनः अपने ही कॉलेज में प्रोफ़ेसर बन आ गया है। कक्षा में सुधा से बस आँखों ही आँखों में बात होती है। मानो सुनना चाहते हो," कह भी दो जो कहना है।"
रिसेस में तीनों फ़िर उसी कॉफ़ी मेज़ पर मिल जाते हैं। कैसी हो, पढ़ाई कैसी चल रही है, माँ बाबा अच्छे हैं ?बस यहाँ तक आकर घड़ी का काँटा रुक जाता है। चुस्कियों के साथ सयानी ही गुनगुनाने लगती है...इतनी मुद्दत बाद मिले हो, किन सोचो में गुम रहते हो। चन्दर की आँखों में पल भर को शरारती सुरूर आता है।सुधा शर्म से लाल हो जाती है। चन्दर, सयानी की ओर मुख़ातिब हो मुहँ खोलता है,"मैं गाँव जा हूँ।" सुधा के गुलाबी ओठ थरथराते हैं, " कब लौटोगे ?" सयानी बोल पड़ती है, " बस, हो गया।"
सयानी अपनी एक सखी के साथ मिल दो ख़त लिखती है, दोनों प्रेमियों की तरफ़ से। दिलों की सारी भावनाएं कागज़ पर उतार देती है।
स्टेशन पर तीनों मिलते हैं। सयानी चिट्ठियाँ थमाती है, "ट्रेन आने से पहले जल्दी से पढ़ लो।"
ख़त पढ़ते ही चेहरे खिल जाते हैं और एक साथ बोल पड़ते हैं, " अभी तक कहा क्यूँ नहीं ? "
तभी ट्रेन आ जा जाती है। सयानी डाँट कर कहती है, " भला हो ,ख़त का आविष्कार करने वालों का। वरना,,,मौन की अति से प्रेम की इति हो जाती।"