कविताहरियाणवी रागिनीअतुकांत कविता
#9-1-२०२१
मेरा प्यारा मीशु
ओ मेरे मीशु, प्यारे पपी
कहाँ छुपे हो रूठके तुम
कैसे ढूंढू मैं तुम्हें ए नन्नू
छुटके से, रुई का गोला
ब्राउनी मीशु, काले नैन
ठंडी बड़ी,ना आए चैन
तिस पर बर्फ़ीली ये रैन
दूध भी क्यूँ नहीं पिया?
स्वेटर टोपा फेंक आए
फ़िर थक हारकर बैठी
कब आ दुबके शॉल में
केसर रंगी फूलों वाली
बाबू कश्मीर से हैं लाए
गुस्से में क्यूँ तुम बैठे हो
मेरी पश्मीना शॉल लोगे
आओ बैठो चुप्पी होके
छोटी सी मैं शॉल काटदूँ
प्यार से मैं तुम्हें ओढ़ा दूँ
मैचिंग करती दोनों शालें
आज दोस्त नहीं आएंगे
हम तुम मिल कर खेलेंगे
ठंडी को करेंगे बाय बाय
चिड़ाएंगे हम हाय हाय
और मैं गुनगुनाने लगी,,,
"ऐसे मीशु मैंने खोया
बिस्तरों के नीचे
कुर्सियों के पीछे
कहाँ गया,कैसे गया ?
मैं थी परेशान
सारा जग ढूंढ लिया
कहीं मीशु ना मिला
मिला तो ठिठुराता
शॉल पर बैठा मिला "
सरला मेहता