कविताअन्य
अलविदा ऐ जाने वाले तुम भी,
क्या कमाल थे, बड़े बेमिसाल थे|
थी गर लाख शिकायतें तुमसे तो क्या,
कुछ खास अच्छाइयों वाले भी साल थे|
वक्त का तुमने पहिया रोका था,
हर चलने वाले को भी टोका था,
दौर ए महामारी में हर एक के पास,
अपनों में रहने को खूबसूरत मौका था|
आलम की भागम भाग में दौड़ने वाली,
अम्मा जी दफ्तर जाने वाली ने भी अबके,
छोड़ दौलत के पीछे भागना घर में ही,
बच्चे के पास रह कीया चूल्हा - चौका था|
ना अम्मा से दूरी ना ही झूठी दौड़ अव्वलता की,
मन मार पढ़ने की कोई मजबूरी,
तुम्हारे इस दौर में खुश बहुत मासूम,
सब दुनिया के निर्मल नौनिहाल थे|
अलविदा ऐ जाने वाले तुम भी,
क्या कमाल थे, बड़े बेमिसाल थे|
थी गर लाख शिकायतें तुमसे तो क्या,
कुछ खास अच्छाइयों वाले भी साल थे|
मैन पाल माचरा