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दिल से दिल तक - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

दिल से दिल तक

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दिल से दिल तक

रूठती तुझसे प्रिये फिर मान जाती हूँ
भूलकर शिकवे पल में मान जाती हूँ

अश्क़ आँखों में छुपाकर के सनम मेरे
तेरे ख़ातिर ही बस थोड़ा मुस्कुराती हूँ

हाले दिल किसको सुनाऊँ हमदम
बाते शिकवों की यूँ ही गुनगुनाती हूँ

तेरे आने से खिलने लगी हैं ख्वाइशें
चिढ़ाती फूलों को थोड़ा सा इतराती हूँ

खुशबू सजना की फ़िज़ा में जो आई है
सौलह श्रृंगार में ख़ुद ही संवर जाती हूँ

दरोदीवार भी मुझको ना रोक पाते हैं
दूर देशों से मैं उड़के चली आती हूँ

दरम्यां तेरे मेरे आ जाए ये सारा जहाँ
दिल से दिल तक की राह बना लाती हूँ
सरला मेहता

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