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मैं तारा बनूँगी - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

मैं तारा बनूँगी

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💐 मैं तारा बनूँगी 💐

आज कक्षा में ग्रह और तारों का पाठ पढ़ाया गया। बच्चों को वार्षिक उत्सव में उसी पर नाटक करना था। मेम बनी लेखा पूछने लगी, " दीप, ग्रहों के बारे में तुम क्या जानते हो ?"
दीप, " मेम ग्रह आठ होते हैं, जैसे अपनी पृथ्वी। "
ऋषि हाथ उठा बताता है, " ये सारे ग्रह अपने तय किए रास्ते पर सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाते हैं। ये अच्छे बच्चों की तरह अपना रास्ता नहीं छोड़ते। इनका अपना प्रकाश नहीं होता बल्कि सूरज से रोशनी लेते हैं। जैसे गैस पर बर्तन रखते हैं तो वह गरम हो जाता है। "
मेम, " बहुत अच्छा, अब तारों के बारे में कौन बताएगा ?"
शुभि, " तारे अनगिनत हैं जैसे हमारे सिर के बाल।कोई छोटा कोई बड़ा ।
ये मनमर्ज़ी से हम बच्चों जैसे यहाँ वहाँ घूमते रहते हैं। और मज़े की बात यह कि ये रोशनी उधार नहीं लेते। ये ख़ुद ही चमकते हैं। पता सूरज भी सबसे बड़ा तारा है।जैसे स्कूल में बड़े सर हैं न।"
कोने में बैठी ट्विंकल चिल्ला पड़ी , " भई मैं तो तारा ही बनूँगी।"
सरला मेहता

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