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दिल्ली चलो - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

दिल्ली चलो

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💐चलो दिल्ली💐

पश्चिमी उत्तरप्रदेश के गाँवों के किसानों की बैठक हो रही है। युवा कृषक गण प्रस्ताव रखते हैं, " ,हमें नए कॄषि बिल के विरोध में अपने टिकैत नेताजी का साथ देने दिल्ली जाना है। चलो सरकार गन्ने का वाजबी मोल व बिजली पानी बिल की माफ़ी का भरोसा तो दिया है।आगे देखते हैं। लेकिन यदि हम सब जाते हैं तो खेती कौन देखेगा ? "
महेश बोलता है, " क्यों न हम बुजुर्गों में से उमराव दादा और किसन काका को भेज दें।"
राजेंद्र शंका जताता है , "अरे भई !ये ठहरी बुजुर्ग जिंदगियां। अत्याधिक ठंड में क्या हाल होगा उनका ?"
तभी मोहन टपक पड़ा, " ओ दादा ! असली घी की ताकत है इनमें।"
सर्वानुमति से उमराव दादा व किसन काका गरम कपड़े, आटा दाल, कम्बल लिए चल पड़े दिल्ली की ओर।
और खुले आसमान के नीचे डाल दिया डेरा। किसी ने पानी का मटका भरवा दिया। बस दोनों बुड़ऊ के खुशहाल चेहरे देखने लायक। सामने होटल से चाय मंगा लेते हैं। दिन में एक बार कंडे का जगरा जला दाल चढ़ा देते। फ़िर बाटी सेक गरम राख में दबा देते। लसन की लाल चटनी का तो काकी ने डब्बा भर दिया था। जब भूख लगी, घी में बाटियाँ डूबा खा लेते। और अपने ज़माने के किस्से याद कर ठहाके लगाते। बीच बीच में अपनी बीड़ी सुलगा धूप का मज़ा लेते।
आने जाने वाले फ़िकरे कसने से कहाँ पीछे रहते, " हिम्मत और साहस तो इन बूढ़ों से सीखे कोई।"
सरला मेहता

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दादी की परी
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