कविताअतुकांत कविता
नव-गीत अब गुनगुनाइए
शिकवे तमाम भूल जाइए
सजा लें नए सुहाने सपने
नववर्ष है,ज़रा मुस्कुराइए
लेकिन लेकिन,,,कुछ याद भी रखना
नए रिश्तें, नए दोस्त कई बनाए होंगे
उम्रदराज़ साथियों को भूल ना जाना
हाँ,नए पौधे तो कई कहीं रोपे होंगे
दरख़्तों की सुध लेना भूल ना जाना
बुन लेना नए सपने आने वाले कल के
किए वादों को निभाना भूल ना जाना
सुविधा के कई उपकरण ग़र खरीदे हैं
लिहाफ़ महरी को देना भूल ना जाना
सोशल मीडिया से ज्ञान तो बढ़ाया है
आत्मा की पुकार सुनना भूल ना जाना
राय तो जब तब सबको देते रहते हैं
अमूल्य वोट देना अपना भूल ना जाना
सरला मेहता