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घर की नायिका,संस्कृति की वाहिका
भाग,,,,,(1)
संस्कारों से ही संस्कृति का सृजन होता है। समाज की संरचना का प्रथम पायदान है घर । और घर की परिकल्पना बिना गृहणी के स्वप्न मात्र है।जी, कहावत भी है"बिन घरनी घर भूत का डेरा"। मकान को घर बनाने में भी संस्कारों की सृजनकर्ता ,,,घर की नायिका का योगदान महान है।
राष्ट्रपिता बापूजी कहते थे कि घर की एक बेटी को शिक्षित करो,पूरा परिवार शिक्षित हो जाएगा। एक पूरा परिवार ही नहीं वरन दो परिवारों की शिक्षा एक बेटी के कांधों पर है। नेपोलियन ने भी दावा किया था कि एक सुदृढ़ राष्ट्र के निर्माण के लिए उसे सिर्फ शिक्षित नारियां चाहिए। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि गृहस्थी की यदि कोई धुरी है तो वह है घर की नायिका।यही नायिका पत्नी बहु माँ एवं सास बनकर संस्कृति की अमूल्य धरोहर को पीढ़ी दर पीढ़ी को सौपती जाती है।अपने द्वारा अर्जित मूल्यों गुणों एवं बुजुर्गों से प्राप्त संस्कारों को हस्तांतरित करने का जरिया है घर की नायिकाएं।
प्राचीन परिपाटियों के अनुसार घर की बहु के चयन में उसका खानदान, उसकी माँ के संस्कार देखे जाते थे। बेटी माँ की ही प्रतिमूर्ति होती है। एक संस्कारित नारी ही घर की छत बन परिवार को समेटे रखती है। घर की आदर्श नायिका कभी भी विभाजित करने वाली दीवार नहीं बनती। वह सुई धागे की मानिंद सिल कर रफू कर जोड़ती है,कैंची की माफ़िक़ काटती नहीं। ऐसी ही घर की नायिका संस्कृति की वाहक बनती है।
पौराणिक कथाओं में भी प्रमाण उपलब्ध हैं।सुर असुर दानव राक्षस यक्षों के जन्म के पीछे भी उनकी माताओं की मनोवृत्तियां जिम्मेदार हैं । ऋषि कश्यप की कई पत्नियां थी। सुरों की माता धार्मिक व सदाचारिणी थी। दैत्यों की माँ दीति तथा दानवों की दनु दोनों ही व्याभिचारिणी थी ,
जिसका प्रभाव उनकी सन्तानों पर परोक्ष रूप से पड़ा। फिर प्रत्यक्ष प्रभाव तो होता ही है।ध्रुव की माता थी सुनीति, प्रह्लाद की मधुरानी। यह घर की नायिकाओं की शिक्षा दीक्षा का प्रभाव था कि उनके बच्चे अमर हो गए। विपरीत परीस्थितियों में भी इन्होंने हार नहीं मानी।
अतः महापुरुषों की चर्चा से भी यही निष्कर्ष निकलता है कि उनकी महानता का श्रेय घर की नायिकाओं को ही जाता है।
सरला मेहता