कवितालयबद्ध कविता
बदरा रे पानी तेरा रीत रहा
सावन अब सूखा ही बीत रहा।
पी गई नदियां अपना ही नीर
हुआ चातक अब प्यास से अधीर।
नैना देखे सूखे आसमान की ओर
कहीं नहीं है पानी का कोई छोर।
ऐसे में झूंठे तुम मेरे मनमीत हुए
संग अपने खुशियों के रंग ले गए।
गए हो जब से तुम परदेस पिया
लगता नहीं तुम बिन अब मेरा जिया।
प्यासी धरती की प्रीत पुकारे पिया
रिमझिम कर दे, हम गायें गीत नया।
आओ तुम मन मीत मेरे सावन है आया
बारिश वाला प्यार तेरा फिर से याद आया।
© पुष्पा श्रीवास्तव
बांसवाड़ा ( राजस्थान )
स्वरचित व मौलीक