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अब्बू का ख़याल - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

अब्बू का ख़याल

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लघु कथा,,अब्बू का ख़याल

चचा सुलेमान व अमीना बी पर खुदा इतना मेहरबान हुआ कि चार चार बेटियां उनकी झोली में डाल दी। नीलोफर शब्बो सुहाना व शमा ।
ऊपर से अब्बू की लाड़ली। पव्वे पांचे खेलने से फुरसत मिले तो अम्मी चार रोटियां सेकना सिखाए।
सुलेमान की माली हालत खस्ता थी। उनकी बड़ी आपा जब तब राय देने से नहीं चूकती, "भैया एक एक करके निपटा इस फ़ौज को।यूँ भी तुम ठहरे अस्थमा के मरीज़।
मेरी नज़र में एक खानदानी लड़का है,हां उम्र होगी कोई तीस साल पर लड़की सुखी रहेगी।"
बस निकाह तय हो गया।करना क्या था ,,कहना भर था तीन बार,"कुबूल है।' नाज़ो से पली अल्हड़ नीलोफर ससुराल आगयी।आते ही सास ने सारी जिम्मेदारी सौप दी,बड़ी बहु जो थी। बेचारी जैसे तैसे सब काम निपटा कर थकी हारी कमरे में आ सो जाती। खाविंद मुस्तफा दुकान बढ़ा बड़े अरमान
से घर पहुंचता। अम्मी की शिकायतें शुरू हो जाती। इधर नादान सी नीलोफर
क्या जाने पति की ख़िदमत करना।
। मुस्तफा के अरमान थे कि बीबी सज संवर कर इंतज़ार करे व प्यार भरी बातें करे। वह भी बीबी की खूबसूरती पर फ़िदा था पर रोज की किच किच से तंग आ गया। उसका हाथ भी उठने लगा ,ऊपर से गालियों की बौछार। नीलोफर अपने अम्मी अब्बू को परेशान नहीं करना चाहती।मुस्तफा के पास तो अपना हथियार था ही,,बोल दिया,"तलाक तलाक तलाक" मासूम मुरझाई नीलोफर शरीर पर चोंटो के निशान लिए आ गई अपने घर।अमीना ने बाहों में
भरकर पूछा,"बेटा, हमें क्यों नहीं बताया?"नीलोफर सिसकते हुए बोली," अब्बू की सेहत का खयाल किया अम्मी।" अमीना ने सोचा क्यों न पड़ोस में रहने वाले वर्मा वकील साहब से राय ले कि आगे करना क्या है। अपने खाविंद सुलेमान के साथ वह वकील सा के घर जाती है। वर्मा जी सलाह देते हैं," यह तीन तलाक अब कानूनन मान्य नहीं है।" सुलेमान कहते हैं," अब मुझे अपनी बेटी को इस निकाह से आज़ादी दिलानी है।मुझे अपनी बेटियों को तालीम दिलाना है। आप मेरी नीलोफर को उस अत्याचारी से छुटकारा दिला दीजिए।"
अमीना ने राहत की सांस लेते हुए कहा," चलो देर आए दुरुस्त आए,अब्बू को बेटी के भविष्य का
खयाल तो आया।
सरला मेहता

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दादी की परी
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