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क्रिसमस - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

क्रिसमस

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क्रिसमस

नन्हा जॉर्ज माँ के पहलू में लेटा प्रश्नों की बौछार करता जा रहा है, " माँ , हम रविवार को चर्च क्यों जाते हैं ? प्रार्थना में मैं तो बहुत सारी चीज़े माँगता हूँ, सब क्यों नहीं मुझे मिलती ?"
बेटे की मासुमियत पर मुस्काती एलीना कहती है, " बच्चे , हम यीशू से शक्ति माँगते हैं ताकी खूब मेहनत कर सब पा सके। फिर दुनिया में इतने बच्चे हैं। सबको थोड़ा थोड़ा बाँटते हैं।"
जॉर्ज पूछता है, " प्रभु यह क्यूँ नहीं देखते कि किसको ज़्यादा ज़रूरत है। हमें बारिश ठंड से बचाने के लिए इस टूटे घर को ही ठीक कर देते।"
माँ जवाब दे तो क्या दे ?
पति थॉमस यदि शराबी जुआरी नहीं होता तो आज उनके पास भी सब कुछ होता। वह , बेटे को समझाती है, " अच्छा, इस बार तुम सच्चे दिल से माँगना। तुम्हें तेज़ बुद्धि दे कि तुम पढ़ लिख कर बड़े आदमी बन सको। "
जॉर्ज उनींदी आँखों से मम्मा को विश्वास दिलाता है , " मैं ज़रूर बुद्धि मांगूगा। लेकिन पहले कहूँगा कि मेरे पापा को अच्छा बना दो। पर यह क्रिसमस साल में एक ही बार क्यूँ आता है ? कम से कम चार बार तो आना चाहिए।"
सरला मेहता

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दादी की परी
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