कविताछंद
मुखकांति अद्भुत है अलौकिक, दर्श मैं करता रहूँ।
हरिनाम का अब मैं निरंतर, जाप भी करता रहूँ।
यह है जगत बस मोह-बंधन, आप तारणहार हो।
विनती सुनो इस दास की प्रभु, आप पालनहार हो।
मनमोहनी छवि आपकी प्रभु, देव करते वंदना।
गंधर्व, ऋषि, मुनि, यक्ष, किन्नर, नित्य करते प्रार्थना।
करबद्ध होकर माँगता मन, भक्ति का वरदान दो।
इस दास की यह याचना प्रभु, श्री चरण में स्थान दो।
स्वरचित :- हिरेन अरविंद जोशी