कवितालयबद्ध कविता
।। नारी ।।
सृष्टि स्वरूपा हे नारी! सब कुछ तुम सहती रहती।
करुणामयी हृदय लेकर, सरिता सी बहती रहती।
बहुरूप लिए धरती पर, निष्काम काम करती हो।
सर्वस्व त्याग कर अपना, सबको अपना करती हो।
वात्सल्य भाव भर मन में, न्यौछावर ममता करती।
करुणामयी हृदय लेकर, सरिता सी बहती रहती।
जीवन पोषण शैशव का, पीयूष सुधा से करती।
ममता की खातिर तुम तो, सदा वेदनाएँ सहती।
माँ के रूप में हे देवि! धीरज धरती सा धरती।
करुणामयी हृदय लेकर, सरिता सी बहती रहती।
संबंध भाई - बहन का, खट्टा - मीठा होता है।
दूर रहे या पास रहे, पर साथ सदा होता है।
बंधन कच्चे धागे का, पर स्नेह सदा तुम रखती।
करुणामयी हृदय लेकर, सरिता सी बहती रहती।
बेटी बन जब आँगन को, किलकारी से चहकाया।
नन्ही परि बन आयी, खुशियों का सागर पाया।
पुष्प लताओं सी बेटी, घर महकाती रहती।
करुणामयी हृदय लेकर, सरिता सी बहती रहती।
शुचि प्रीत लिए तुम आयी, इस एकाकी जीवन में।
देह सहित मन अर्पण कर, पूर्ण किये सारे सपने।
छोड़ सभी रिश्ते नाते, सब कुछ न्यौछावर करती।
करुणामयी हृदय लेकर, सरिता सी बहती रहती।
स्वरचित :- हिरेन अरविंद जोशी
वड़ोदरा