कविताअतुकांत कविता
बेरुखी का आलम
तेरी बेरुख़ी का आलम नहीं कम है
मेरी चाहत यारां तुझसे नहीं कम है
तेरे वादों की फ़ेहरिस्त बड़ी लंबी है
तुझसे रुबरू न होने का मुझे गम है
ख्वाइशें सँजोई तुझे पाने की जानू
क्या तेरा कोई दूसरा ही हमदम है
दूरियाँ ना रही कभी मजबूरियाँ मेरी
दिल से चाहा तुझको, तू ही सनम है
सरला मेहता