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लॉक डाउन में क्या खोया क्या पाया - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

लॉक डाउन में क्या खोया क्या पाया

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सरला मेहता इंदौर

विषय-लॉक डाउन में क्या खोया क्या पाया
शीर्षक-
कांटों के बीहड़ में खिले गुलाब,,,,,,
ऐसा दीर्घकालीन बन्द पहली बार झेला
स्वच्छन्दता छिनी, हुए पिंजरे में बंद
शालाओं कार्यालयों में कामकाज ठप्प
अर्थव्यवस्था देश में हो गई ध्वस्त


विद्यार्थी दैनिक मज़दूर विभिन्न कारोबारी।
घर से दूर अटक गए जहॉ के तहां
डर और खौफ़ ने की ज़िंदगी
अस्त व्यस्त
तिस पर कोरोना के कहर ने किया भय ग्रस्त

राशन ज़रूरी सामग्री के पड़ गए लाले
मुश्किल हुआ जीना सब जगह पड़े ताले
जो सुबह कमा रात को दो रोटी खाते
कहीं से कुछ मिलने की आस में भूखे ही सो जाते

ऑनलाइन कक्षाएं क्या कर पाएगी चमत्कार
कैसे होगा नौनिहालों का उद्धार
त्यौहार उत्सव में कब तक रहेंगा सूनापन
कब लौटेगी बाज़ारों में फिर वही रौनक

काटों के इस बीहड़ जंगल में कुछ गुलाब भी खिले
इस आपदा ने कई अवसर भी
किए प्रदान
सनातन संस्कृति का होने लगा प्रादुर्भाव
अतीत के संस्कारों का हुआ आविर्भाव

पाठ पूजा हवन ने सुधार दिया है आचरण
जूते बाहर उतार हाथ पैर धोने की आदत
घर के कोने कोने में सफ़ाईका आलम

भावना सहयोग की परस्पर व सेवकों संग
होटली चाट पकोड़े के बन्द हुए चटकारे
घर के शुद्ध सात्विक भोजन के नज़ारे
माँ के हाथ के समोसे कचौड़ी
गुलाबजामुन
मिल बै चर्चा के ज़ायके के साथ उठाते हैं लुत्फ़

मानव अंदर तो प्रकृति भी
अति प्रसन्न
जंगल के राजा भी सैर को सड़क पर निकले
पंछियों की चहचहाट वाली मुस्काई भोर
प्रदूषण कम तो पर्यावरण हुआ गदगद

अंग्रेज छोड़ गए थे आपस में हाथ मिलाना
अब हम सीख गए नमस्ते कर मुस्कुराना
सरला मेहता

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