कहानीलघुकथा
नपुसंक
नौरता में जन्मी पोती का नाम दादी ने देवी रख दिया। रूप भी वैसा ही पाया था। उम्र के साथ निखार आता गया।
दादी अपने हीरे को कोयले का पावडर चुपड़ छुपाने के प्रयास में जुटी रहती।जहाँ से गुज़रती कई कामुक नज़रों का शिकार होने से फ़िर भी नहीं बचती। आख़िर हार कर उसे मामा के घर वृंदावन भेज देती है। पर किस्मत तो आगे आगे ही चलती है। वहाँ देवी एक सलोने से कृष्ण के दिल में बस जाती है। मामा का पड़ोसी है। और देवी को संगीत की तालीम के लिए आता है।
गरीब बापू की बेटी देवी की दो बहनें व एक भाई भी है। धंधे की जुगाड़ में वह अपने साले से मशविरा करता है। साले सा बहती गंगा में हाथ धोने का सोच जीजा को पुजारी से मिलाते हैं।
मामा के घर में ब्याह की तैयारियाँ जोर शोर से जारी हैं।सब साजिशों से अनजान देवी अपने जेवर कपड़े देखकर ही खुश है। घूंघट में दुल्हन को मंदिर ले जाते हैं। ज्यों ही वरमाला के लिए हाथ उठते हैं, कृष्ण के गले में सज जाती है।
आक्रोशित पुजारी श्राप देते हैं, " देव-विवाह में विघ्न डालने वाला नपुसंक हो जाता है।"
देवी के हाथ पकड़े कृष्ण जवाब देता है , " एक भोली बालिका को देवदासी बनाने वाला तो हर जन्म में ,,,,,,,,, ।"
सरला मेहता