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शत शत नमन - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

शत शत नमन

  • 210
  • 6 Min Read

विजय दिवस पर
शत शत नमन

शत शत नमन रणबांकुरों को
देश के उन लाड़लों को
जो मुसाफ़िर थे जहां में
वो फ़रिश्ता बन गए हैं

नम हुई आँखों से माँ ने
विजय टीका है लगाया
भर के बाहों में पिता ने
आशीषों का गीत गाया
सबकी आँखों का जो तारा
देश हित में दे रहे हैं

बहन से राखी का बंधन
रेशमी अहसास बोला
आते सावन की प्रतीक्षा
और पीपल का वो झूला
हैं लगे जो घाव दिल में
आंसूओं से धो रहे हैं

मेहँदी हाथों में सजी है
घुंगरू पायल के छनकते
लाल चूनर के सितारे
पिया मिलन को तरसते
खनखनाते चूड़ी कंगन
तुमको विदाई दे रहे हैं

तभी सुदूर वादियों से
युद्ध का संदेश आया
मात देकर शत्रुओं को
ताबूत में सो गया वो
हंसते हँसते जो गया था
कांधों पे देखो आ रहा है

माँ का आँचल तरबतर है
सारे लहू को पोछ डाला
चूम के माथा बहु का
एक बार फिर पी से मिलाया
बंद कर दो शोर सारे
लाल मेरा सो रहा है

आशाएं बहनों की टूटी
लाड़ला तू सबका था
रक्षा बंधन के सब वादे
झूठे साबित कर गया तू
पिता काधों पर उठा
श्मशान लेकर जारहे हैं

लाल चूनर उड़ के लिपटी
तिरंगा ओढे पिया से
चूड़ियां निस्तब्ध हैं
ठहर थोड़ा और जाते
हर जनम मिलते रहेंगे
अंश अपना दे गया है।

सरला मेहता
मौलिक

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