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सबसे बड़ा छाता - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

सबसे बड़ा छाता

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सबसे बड़ा छाता

राम जी के संस्कारित परिवार में श्रद्धालू पत्नी शालिनी सभी नियम धर्म का पालन करती हैं।बड़े दादाजी की मरणोपरांत कर्मों की तैयारियां चल रही हैं।ताक़ीद दी गई कि शयन सामग्री के साथ छाता व चप्पल कहीं भूल न जाए।नन्हा बबलू पूछ बैठा," हाँ दादी,जैसे आपने उस दिन भी छाता सुराही व खरबूजा आदि मंदिर में चढ़ाया था।" दादी बोली," बेटू,अक्षयतृतीया के दिन,,,,ये चीज़े गर्मी से बचाती हैं ना।"
सारी सामग्री पूजास्थल पर रख दी गई।दान करने का समय आया तो छाता गायब।
ढुंढाई चल ही रही थी कि बबलू ने पापा को धीरे से कहा,"वो तो मैंने जूते सुधारने वाले बाबा को दे दिया। उनके छाते में कई छेद हो गए थे,वो बेचारे कहीं,,,,।" यह जान रामजी बोले," शाबाश बच्चे, तुमने बड़े दादा की आत्मा को खुश कर दिया।"
वहां बैठे सभी जन तर्क वितर्क करने लगे। किन्तु राम जी ने सबका मुंह बंद कर दिया,"अरे भागवानों ईश्वर भी उन्हीं पर प्रसन्न होता है जो गरीबों की मदद करते हैं।हमारे बबलू ने सुपात्र को ही दान दिया है।"इतने में दादी भी पोते की हिमाक़त करने आ पहुंची ," प्रभु भी परमार्थी लोगों को अपनी छत्रछाया में रखता है।"अबोध बबलू पूछ बैठा छत्रछाया मतलब,,,,," दादा ने समझाया," सबसे बड़ा छाता जो दुःख व परेशानी से बचाता है।"मासूम बबलू ने ऐलान कर दिया," ठीक है,अब तिरतया,,,,पर मालीबाबा को भी एक छाता
दे देंगे,बेचारे बारिश में बोरा ओढ़ कर आते हैं
सरला मेहता

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दादी की परी
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