कहानीलघुकथा
"बात बस दो कदम की"
शिरीष पत्नी सुजाता का बहु के प्रति उखड़ा सा व्यवहार देख सोचने लगते हैं। दोनों ही बेटे पार्थ के लिए सौम्या जैसी बहु पाकर धन्य हो गए थे।
।शिक्षित ,सुशील व् हर बात में दक्ष,,,किसी बात की कमी नहीं।वह सासु माँ के निर्देश में
घर की जिम्मेदारियाँ कुशलता पूर्वक निभाने लगी।हाँ जाने अनजाने में पति की पसंद नापसंद को भी नजरअंदाज कर देती।परंतु माँ की ख़ुशी के खातिर वह भी पत्नी का साथ देने का पूरा प्रयास करता।
ऐसे में परिवार में नए मेहमान के आगमन की खुशखबर ने प्रसन्नता में चार चांद लगा दिए। और गोल मटोल प्यारे से पोते को पाकर सुजाता को मानो खज़ाना मिल गया।
परंतु सासुमां के उपदेश अब सौम्या पर भारी पड़ने लगे। मालिश कर नहलाओ,आँखों में काजल लगाओ,घुटी आदि पिलाओ सी नसीहतें सौम्या के आधुनिक विचारों से मेल नहीं खाती।
शिरीष सुजाता को उदास देख कारण पूछ बैठते हैं ,
"आज लाड़ला दादी की गोद के बजाय झूले में क्यों रो रहा है।" सुजाता का गुस्सा फूट पड़ता है,"मेरा क्या ,मैं तो पुराने जमाने की ठहरी।बहु जैसा चाहे या जैसा डॉक्टर कहे वैसे ही बच्चे की परवरिश करे।"
शिरीष सारा माज़रा समझ सुजाता से कहते हैं,"देखो,बहु ने चार कदम पीछे हटकर तुम्हारी हर बात मानी।क्या तुम दो कदम आगे नहीं बढ़ सकती? बस दो कदम की ही बात है।" सुजाता को अपनी गलती का अहसास हो जाता है।वह झटपट सेब का जूस तैयार कर बहु को कहती है,"छोटू कब से रो रहा है,आज उसे जूस नहीं दोगी?"
सरला मेहता