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तक़दीर की बात - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

तक़दीर की बात

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तकदीर की बात

"राजकुमारी,मेरी राजो बेटी कहाँ हो?",माँ शिवानी ने पुकारा। पापा महादेव टोंकते हुए चिल्ला पड़े," राज कुमारी ही कहो, उसका नाम मत बिगाड़ोभागवान।" माँ पापा दोनों की हार्दिक इच्छा है कि लाड़ो के जीवन में कभी दुःख की छाया भी ना पड़े। भाग्य से एक राजकुमार भी मिल गया। नगर सेठ का बेटा राजा धूमधाम से अपनी रानी को ले गया। कसबे वालों को ईर्ष्या होने लगी।
शायद नज़र ही लग गई।परन्तु होनी को कौन टॉल सकता है। राजा की जुंए की लत और सर से पिता का साया उठने से,धन्ना सेठ सड़क पर आ गया। राजा ससुराल आता है।सास शिवानी लड्डुओं में सोने की अशर्फियाँ रख दामाद जी को देती है।राजा सोचता है कि इतने सारे लड्डू ढोने के बजाय क्यों न इन्हें बेच दिया जाए। घर पहुंचने के पूर्व लड्डू खरीद लेगा।संयोग से महादेव वही लड्डू खरीद कर ले आते हैं।
शिवानी मायूस हो पूरा किस्सा बयान करती है।महादेव हाथ ऊपर उठाते हुए बुदबुदाते हैं, "बेटी की तक़दीर तो हम नहीं बदल सकते।हाँ,, वह अपनी तदबीर से अवश्य चमत्कार कर सकती है।'
सरला मेहता

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