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ज़िन्दगी का गणित - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

ज़िन्दगी का गणित

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आज गणितदिवस पर
श्री रामानुजन जी को समर्पित

ज़िन्दगी का गणित

योगा करते समय भी वर्मा जी का ध्यान आज भटक रहा है। शांत प्रकृति के कारण दादा ने नाम रखा संतोष। प्रेमचन्दजी
वाले बड़े भाईसा का खिताब तो मिला लेकिन,,,खामयाजा भी भुगतना पड़ा। तभी,,,, नकचढ़ी पत्नी का आदेश," सब्ज़ी नहीं लाना क्या? तुम जानो,दाल चांवल बना दिए मैंने तो।" झिड़की सुन तुरंत थैला ले निकल पड़े। पड़ोसन चाची ने टोका," लल्ला मेरी भी एक लौकी ले अइयो।" बस ऐसे ही रिश्तेदार , पड़ोसी मित्र आदि सभी के लिए वे धोबी का गधा,जब चाहे तब लादा बनकर रह गए। ऑफिस में भी बड़े सदाशय।भलमानसता का फ़ायदा भला कौन नहीं उठाता। कोई भी अपनी फ़ाइल पकड़ा देता,अरे दादा , जरा टोटल चेक कर देना।" इसी मंथन ने उन्हें बीमार सा ही बना दिया।
उसी वक्त वर्मा जी के जिगरी दोस्त आ टपकते हैं पुकारते हुए, " अरे क्या कर रहे हो मेरे भोले भंडारी ?"
वे हैरान हो पूछ बैठते हैं,"ये क्या गत बना ली मेरे यार ?" वर्मा जी को गले लगा कहते हैं," तुम अभी तक भी जिंदगी का गणित नहीं समझ पाए। कभी ना कहना भी सीखो। देखो भाई, आशा व विश्वास को जोड़ो,चिंताएं घटाओ, खुशियों को गुणित कर अपने दायित्वों को विभाजित करो" उस रात संतोष जी पहली बार् संतोष की नींद ले पाए।
सरला मेहता

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दादी की परी
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