कहानीलघुकथा
शहीद की बीबी
घर दुल्हन की तरह सजा है। लाड़ली बहु पीहू की गोद भराई जो है। ननद रानी को भाभी के श्रृंगार से फुरसत नहीँ। मेहँदी भी खूब रची है। सारे गहने फ़ूलों से तैयार किए हैं।
इंदु चाची पसीना पोछती रसोई में सुबह से व्यस्त है। एक दादी ही है जो उसकी मदद करती है। हाँ जिठानी जी प्रीता को वो फूटी आँखों नहीं सुहाती। प्रीता के भाई आलोक जब भी आते,इंदु से अच्छी जमती है।
"अरे , ये चाची बेचारी बीमार ही पड़ जाएगी। वो महाराज को भी मम्मी ने लौटा दिया।" पत्नी पीहू को निहारते हुए विनोद ने नाराजी जताई।
मुहरत कहीं चूक ना जाए, इसी अफरा तफ़री में प्रीता अपना गजरा लगाते हुए तल्ख़ी से बोली," इंदु रसोई में काम हो गया हो तो ऊपर चली जाना। गोद भराई मेरी बहन नीता से करवाना है। उसी की गोद भरी पूरी है और पहला स्वस्थ बेटा भी है।"
दादी ऊँची आवाज़ में कहती है," इंदु दरवाज़े से देख भी नहीं सकती क्या? अभी तक बहु की देखरेख तो वही करती आई है।"
सारी बहस सुन विनय ख़ुद को रोक नहीं सका। इंदु चाची को नई साड़ी पहना , हाथ पकड़ के ला कर बोला, " पीहू की गोद भराई चाची ही करेगी। वो एक शहीद की बीबी है। ये क्या कम है ?" और तभी आलोक भैया इंदु की मांग में सिंदूर भर देते हैं। दादी, विनय की ओर देख चहक उठी," ये लो चाची भी सुहागन हो गई।"
सरला मेहता